Ancestral Property Dispute: भारत में संयुक्त परिवार की परंपरा पुरानी है, लेकिन समय के साथ सामाजिक और आर्थिक बदलावों ने इस व्यवस्था को प्रभावित किया है। अब अधिकांश लोग एकल परिवारों में रहना पसंद करते हैं और इससे संपत्ति के बंटवारे के मामले सामने आ रहे हैं। खासकर तब जब किसी व्यक्ति को अपने ही परिवार—दादा, पिता या भाई—से अपनी पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल रहा हो। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि कानून आपके अधिकारों के बारे में क्या कहता है और आप अपनी पैतृक संपत्ति में अपना हक कैसे ले सकते हैं।
पैतृक संपत्ति क्या होती है?
हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार, वह संपत्ति जो चार पीढ़ियों तक पूर्वजों से चली आ रही हो, पैतृक संपत्ति कहलाती है। यह संपत्ति पिता, दादा, परदादा और परपरदादा से प्राप्त होती है और इसमें किसी भी उत्तराधिकारी का अधिकार जन्म से ही बन जाता है। इस प्रकार की संपत्ति को साझा माना जाता है और इसे बेचने, उपहार में देने या किसी अन्य रूप में स्थानांतरित करने के लिए सभी सहधारकों की सहमति आवश्यक होती है।
यह संपत्ति स्वयं अर्जित संपत्ति से अलग होती है। स्वयं अर्जित संपत्ति वह होती है जिसे किसी व्यक्ति ने अपने प्रयास से कमाया हो। उस पर उसका व्यक्तिगत अधिकार होता है और वह इसे किसी को भी देने के लिए स्वतंत्र होता है।
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महिलाओं के अधिकारों में बदलाव
बहुत लंबे समय तक भारतीय समाज में यह धारणा थी कि महिलाओं का मायके की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता, क्योंकि शादी के बाद उनका घर ससुराल होता है। लेकिन यह सोच अब कानून की नजरों में गलत है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में वर्ष 2005 में किए गए संशोधन के बाद बेटियों को भी बेटों के बराबर पैतृक संपत्ति में अधिकार दे दिया गया है। इसका मतलब है कि बेटी, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, उसका अपने पिता और पूर्वजों की संपत्ति पर उतना ही अधिकार है जितना कि बेटे का होता है।
यह संशोधन भारतीय समाज में लैंगिक समानता की दिशा में एक अहम कदम माना गया। इससे महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनने में मदद मिली और वे अपने हक के लिए कानूनी रूप से लड़ने लगीं।
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क्या जन्म से ही बन जाता है अधिकार?
हां, पैतृक संपत्ति में अधिकार जन्म से ही बन जाता है। इसका मतलब है कि किसी व्यक्ति को इस अधिकार के लिए किसी की अनुमति या कृपा की आवश्यकता नहीं होती। चाहे वह व्यक्ति परिवार से अलग रह रहा हो या उसकी शादी हो चुकी हो, वह अपने हिस्से का हकदार बना रहता है।
यदि कोई सदस्य संपत्ति को बेचने या किसी और को देने की कोशिश करता है, तो वह गैरकानूनी माना जाएगा जब तक कि सभी सहधारकों की सहमति न हो। इसी तरह, संपत्ति के बंटवारे या बिक्री से प्राप्त धन में भी सभी उत्तराधिकारियों को समान हिस्सा मिलना चाहिए।
अगर परिवार हिस्सा देने से मना करे तो क्या करें?
यदि दादा, पिता या भाई आपको पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर रहे हैं तो सबसे पहले एक कानूनी नोटिस भेजना चाहिए। इस नोटिस में अपने अधिकारों का उल्लेख करें और एक निश्चित समय सीमा के भीतर बंटवारा करने की मांग करें।
यदि नोटिस का कोई जवाब नहीं मिलता या संतोषजनक उत्तर नहीं दिया जाता है, तो आप सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर कर सकते हैं। मुकदमे में यह स्पष्ट बताना होगा कि संपत्ति पैतृक है और आप उसमें बराबरी का हिस्सा चाहते हैं। साथ ही, अदालत से यह अनुरोध भी कर सकते हैं कि मुकदमे की प्रक्रिया पूरी होने तक संपत्ति को बेचा या ट्रांसफर न किया जाए।
यदि संपत्ति पहले ही बेच दी गई हो, तो खरीददार को भी मुकदमे में पक्षकार बनाकर अपनी हिस्सेदारी की मांग की जा सकती है।
दस्तावेजों और सबूतों का महत्व
कानूनी प्रक्रिया में सफलता के लिए दस्तावेज और सबूत बेहद जरूरी होते हैं। आपको यह साबित करना होगा कि संपत्ति पैतृक है। इसके लिए नीचे दिए गए दस्तावेज जरूरी हो सकते हैं:
रजिस्ट्री के कागजात
खसरा-खतौनी और म्युटेशन रिकॉर्ड
वंशावली का प्रमाण
पुरानी रसीदें या टैक्स दस्तावेज
सरकारी रिकॉर्ड या पटवारी द्वारा प्रमाणित दस्तावेज
यदि पुराने दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं तो आप तहसील, रजिस्ट्रार कार्यालय या पटवारी से इनकी प्रतियां प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, पारिवारिक रिश्तों को साबित करने के लिए गवाहों की गवाही या DNA टेस्ट जैसी तकनीक भी उपयोग में लाई जा सकती है।
न्यायालयी प्रक्रिया और संभावित समय
भारत में संपत्ति से जुड़े मुकदमे लंबा समय ले सकते हैं। हालांकि अब अदालतें तेजी से मामलों को सुलझाने की कोशिश कर रही हैं, फिर भी यह एक धैर्य का काम होता है।
मुकदमे के दौरान अदालत द्वारा मध्यस्थता (मेडिएशन) का रास्ता भी सुझाया जा सकता है। यदि सभी पक्ष सहमत हों, तो अदालत के हस्तक्षेप से आपसी समझौता हो सकता है, जो अक्सर सभी के लिए बेहतर होता है।
निष्कर्ष
पैतृक संपत्ति पर हर व्यक्ति का अधिकार जन्म से बनता है और यह अधिकार किसी की मर्जी पर निर्भर नहीं करता। यदि आपके परिवार के सदस्य, चाहे वह पिता हों, भाई हों या दादा, आपको आपके हिस्से से वंचित करना चाहते हैं तो आप कानूनी मदद लेकर अपना हक पा सकते हैं। जरूरी है कि आप अपने अधिकारों के प्रति सजग रहें और समय रहते सही कदम उठाएं।
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Disclaimer
यह लेख सामान्य कानूनी जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है। संपत्ति संबंधी कानून राज्य और व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले योग्य वकील से परामर्श जरूर लें।