UP Electricity Rate Hike: उत्तर प्रदेश के आम लोगों के लिए आने वाला समय महंगा साबित हो सकता है। राज्य में बिजली दरों में भारी बढ़ोतरी की संभावना जताई जा रही है। खबरों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) ने 2025-26 के लिए विद्युत नियामक आयोग को एक प्रस्ताव भेजा है, जिसमें बिजली की दरें 30 प्रतिशत तक बढ़ाने की मांग की गई है।
इस प्रस्ताव में बिजली कंपनियों ने अपना तर्क यह दिया है कि वे गंभीर घाटे में चल रही हैं और यदि दरें नहीं बढ़ाई गईं, तो उनकी स्थिति और बिगड़ सकती है। अगर आयोग इस प्रस्ताव को मंजूरी देता है, तो आम जनता को हर महीने बिजली के बिल में बड़ी बढ़ोतरी का सामना करना पड़ सकता है।
क्यों उठ रही है बिजली दरें बढ़ाने की मांग?
बिजली कंपनियों का कहना है कि उनके खर्च और आमदनी के बीच का अंतर तेजी से बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, बिजली कंपनियों को 2025-26 में लगभग 19,600 करोड़ रुपये का घाटा होने का अनुमान है। यह घाटा सब्सिडी मिलने के बावजूद हो रहा है।
वर्तमान में बिजली कंपनियों को उपभोक्ताओं से बिजली की पूरी कीमत नहीं मिल पा रही है। पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 में सिर्फ 88 प्रतिशत बिलों की वसूली हो पाई है। इस वजह से जो राजस्व गैप 2023-24 में 4,378 करोड़ रुपये था, वह बढ़कर 2024-25 में 13,542 करोड़ और अब 2025-26 में 19,600 करोड़ हो सकता है।
UPPCL ने साफ किया है कि वह इस बढ़ते घाटे को अब और झेलने की स्थिति में नहीं है, और अगर समय रहते समाधान नहीं किया गया, तो बिजली आपूर्ति व्यवस्था पर भी असर पड़ सकता है।
पिछले पांच वर्षों में नहीं बढ़ी बिजली दरें
अधिकारियों का दावा है कि पिछले लगभग पांच सालों में राज्य में बिजली दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इस दौरान बिजली की खरीद, रखरखाव और वितरण की लागत लगातार बढ़ी है, लेकिन दरें स्थिर रहीं। ऐसे में पावर कंपनियों पर आर्थिक दबाव बढ़ता गया।
राजस्व घाटा 12.4 फीसदी तक बढ़ गया है, जिसे अब नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है। इसी वजह से कंपनियों ने विद्युत नियामक आयोग से अनुरोध किया है कि वह इस संकट को ध्यान में रखते हुए दरों में बढ़ोतरी को स्वीकृति दे।
वसूली में हो रही परेशानी
एक और बड़ी समस्या यह है कि बड़ी संख्या में उपभोक्ता बिजली बिल जमा नहीं कर रहे हैं। बिजली विभाग के अनुसार:
54.24 लाख उपभोक्ताओं ने एक बार भी बिजली बिल जमा नहीं किया है। इन पर 36,353 करोड़ रुपये का बकाया है।
वहीं, 78.65 लाख उपभोक्ता पिछले छह महीने से बिल नहीं भर रहे हैं। इन पर भी 36,117 करोड़ रुपये का बिजली बिल बाकी है।
इतने बड़े बकायेदारों के कारण कंपनियों की माली हालत और खराब हो गई है। इसके अलावा, राज्य में लगभग 10 प्रतिशत ट्रांसफॉर्मर खराब स्थिति में हैं, जिससे आपूर्ति की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
उपभोक्ता संगठनों और विरोधियों की प्रतिक्रिया
बिजली दरों में प्रस्तावित बढ़ोतरी को लेकर अब विरोध भी शुरू हो गया है। ऊर्जा और उपभोक्ता संगठन इसे आम जनता पर बोझ डालने की नीति बता रहे हैं। उनका कहना है कि यह वृद्धि निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए की जा रही है।
कई संगठनों ने यह भी आरोप लगाया है कि सरकार और बिजली कंपनियां अपनी नाकामी छुपाने के लिए बिजली दरें बढ़ा रही हैं। उनका कहना है कि अगर बिलों की सही वसूली की जाती, तकनीकी खराबियों को दूर किया जाता, और भ्रष्टाचार पर लगाम लगती, तो दरें बढ़ाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
आम आदमी पर असर
अगर बिजली दरों में 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी होती है, तो इसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा। घरेलू उपभोक्ता पहले ही महंगाई से परेशान हैं, ऐसे में बिजली बिल में बड़ी वृद्धि उनके मासिक बजट को और बिगाड़ सकती है।
जो उपभोक्ता पहले 1,000 रुपये बिल भरते थे, अब उन्हें लगभग 1,300 रुपये तक का भुगतान करना पड़ सकता है।
मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग पर इसका प्रभाव अधिक होगा, क्योंकि उनकी आय सीमित होती है।
इसके अलावा, छोटे उद्योग और दुकानदारों की लागत भी बढ़ेगी, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों पर भी असर पड़ सकता है।
आगे क्या?
अब सबकी नजर विद्युत नियामक आयोग के फैसले पर टिकी है। आयोग अगर कंपनियों के प्रस्ताव को मंजूरी देता है, तो 2025-26 में बिजली के नए दर लागू हो सकते हैं।
वहीं, उपभोक्ता संगठनों ने आयोग से अपील की है कि वे जनता की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए कोई भी निर्णय लें। साथ ही सरकार से भी यह मांग की गई है कि वह बिजली कंपनियों की कार्यप्रणाली में सुधार लाए, बकाया वसूली को सख्ती से लागू करे और तकनीकी खामियों को दूर करने पर ध्यान दे।
निष्कर्ष
बिजली दरों में 30 प्रतिशत बढ़ोतरी का प्रस्ताव उत्तर प्रदेश की जनता के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। यदि यह प्रस्ताव मंजूर हो जाता है, तो आम लोगों को महंगाई का एक और झटका लगेगा। बिजली कंपनियों का घाटा, खराब वसूली और तकनीकी समस्याएं इस स्थिति के लिए जिम्मेदार मानी जा रही हैं।
आम जनता को राहत तभी मिल सकती है जब शासन और प्रशासन दोनों मिलकर बिजली वितरण व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करें। साथ ही उपभोक्ताओं को भी चाहिए कि वे समय पर बिल का भुगतान करें, ताकि व्यवस्था सुचारु रूप से चलती रहे।